Kumar Koutuhal
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Occupation | bus kuchh bhi |
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Introduction | हमारा समय अंधेरे से निकलकर अलसाई भोर के माथे पर फैले सिंदूर को पोंछते आता है सूरज बिल्कुल चुपचाप- हमारे आसपास। पूर्वान्ह..मध्यान्ह...अपरान्ह.. समय के परिन्दे के तीन पर , तेरे ,मेरे ,उसके ..। हम सबके किए न किए के जीवित अभिलेख रचते हैं इतिहास। ’’ हमारे समय में यह था ,वह था , तुम्हारे समय में क्या है ?’’ प्रश्नों की उंगलियां चटखाते उलाहने कब तक सुनेगा समय... हमारा समय , कब तक जुगालियों के दाने डालेगा अतीत ? वर्तमान की चोंच में ! कब तक भोगेंगे हम अकर्मण्यता का संत्रास ? व्यतीत के बड़बड़ाते खरखराते समलय तान के बीच से अब आने दो नयी तान अब आए नया राग अब गाए अपनी ही धुन में समय... हमारा समय , हमारा समय यानी एक नया आभास ...सप्रयास । -कुमार कौतुहल |
Interests | reading unique, writing unique |
Favorite Movies | depends |
Favorite Music | classical and based on clscl. |