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Introduction किसी महापुरुष की जीवनी इसलिए लिखी जाती है कि पाठकगण उससे प्रेरणा प्राप्त कर अपने जीवन को उन्नत बनाने में उसका उपयोग कर सकें । इस दृष्टि से श्री स्वामीजी महाराज की जीवनी लिखने का संकल्प परिचित मित्रों के मन में बार-बार उठता रहा है । परन्तु श्री स्वामीजी महाराज ने इस बात को कभी पसन्द नहीं किया कि उनकी जीवन-गाथा लिखी जाय । एक आदर्श शरणागत संत के रुप में उन्होंने परमात्मा की ही महिमा को धारण करना एवं प्रकाशित करना पसन्द किया । उन्होंने ज्ञान और प्रेम को ही दिव्य-चिन्मय तत्व के रुप में प्रकट करना पसन्द किया । अपने सीमित अहम्‌ के लेश-मात्र का भी उल्लेख उन्हें प्रिय नहीं था । उनकी अमर वाणी है-- (१)मेरा कुछ नहीं है, (२)मुझे कुछ नहीं चाहिए, (३)मैं कुछ नहीं हूँ । (४)सर्वसमर्थ प्रभु मेरे अपने हैं।